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सुनीता श्रीवास्तव

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डॉ. सुनीता श्रीवास्तव[सम्पादन | स्रोत सम्पादित करैं]

डॉ. सुनीता श्रीवास्तव का जन्म मध्य प्रदेश के छोटे से गांव 'राजगढ़' (ब्यावरा) में हुआ था। उनके माता-पिता, श्रीमती प्रेमलता बाई श्रीवास्तव और श्री दुर्गा प्रसाद श्रीवास्तव, की पुत्री सुनीता बचपन से ही लेखन और साहित्य में रुचि रखती थीं। उनके प्रारंभिक संस्मरण "मेरा पहला उद्बोधन" (स्वदेश समाचार पत्र में प्रकाशित) में उनके साहित्यिक झुकाव का वर्णन है, जिसमें वे बताती हैं कि जब वह कक्षा 8वीं में थीं, तब उनके विद्यालय में शिक्षा विभाग द्वारा निरीक्षण हुआ था। इस निरीक्षण के दौरान उन्हें उद्बोधन का अवसर मिला, जिसमें उन्होंने अपनी बड़ी बहन के साहित्यिक ज्ञान का उल्लेख किया। इस घटना ने सुनीता के जीवन की दिशा बदल दी, और उन्होंने साहित्य में रुचि लेना शुरू कर दिया। शिक्षा निरीक्षक उनके उद्बोधन से प्रभावित हुए और उन्हें पुरस्कार से सम्मानित किया।

सुनीता के माता-पिता विज्ञान के क्षेत्र में उनका भविष्य देखना चाहते थे, और इसी कारण उन्होंने B.Sc और M.Sc की डिग्री हासिल की तथा आयुर्वेद में कोर्स किया। हालांकि, सुनीता ने B.Ed की भी पढ़ाई की और आठ वर्षों तक हिंदी साहित्य, केमिस्ट्री और बायोलॉजी का अध्यापन किया। बाद में, पत्रकारिता की ओर रुझान बढ़ा और उन्होंने पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातक की उपाधि प्राप्त की।

सुनीता की मुलाकात नवभारत के संपादक से हुई, जिसने उनकी जिंदगी का नया पृष्ठ लिखा। उनके संस्मरण "बस्ती का दर्द" में उन्होंने बस्तियों के निरीक्षण के अनुभव साझा किए और बस्ती के निवासियों की समस्याओं पर प्रकाश डाला। यह रिपोर्ट कई समाचार पत्रों में प्रकाशित हुई और काफी सफल रही।

अपनी शादी के बाद भी, सुनीता ने अपने साहित्यिक और पत्रकारिता के कार्यों को जारी रखा। उन्होंने "शुभ संकल्प समूह" की स्थापना की, जो मध्य भारत की सर्वोत्तम साहित्यिक-सामाजिक संस्थाओं में से एक है। सुनीता ने नेपाल और दुबई में भी साहित्यिक योगदान दिया। नेपाल में उन्होंने दो अंतर्राष्ट्रीय साहित्य संगोष्ठियों का आयोजन किया और पुस्तक "भारत-नेपाल" का संपादन किया। उन्हें नेपाल की प्रसिद्ध प्रज्ञान संस्था और "राष्ट्रीय साहित्य एवं कला विश्वविद्यालय नेपाल" द्वारा सम्मानित भी किया गया।

सुनीता का मानना है कि संस्मरण विधा उनके लिए बेहद खास है, क्योंकि इसमें हमारे बीते हुए लम्हों और स्मृतियों को पुनः जीवित किया जा सकता है। उन्होंने कहानी, लघुकथा, कविता, आलेख और सुविचार भी लिखे हैं। उनकी कहानी "बूढ़ा बचपन" सृजन ऑस्ट्रेलिया पुरस्कार 2013 से पुरस्कृत है। वर्तमान में, सुनीता इंदौर में निवास कर रही हैं और साहित्यिक गतिविधियों में सक्रिय रूप से शामिल हैं। उनकी साहित्यिक संस्था से 1500 से अधिक साहित्यकार जुड़े हुए हैं, जिनमें 100 से अधिक प्रवासी भारतीय साहित्यकार शामिल हैं।

https://www.thepurvai.com/an-article-bu-dr-sunita-shrivastav/

https://m.sahityakunj.net/lekhak/sunita-shrivastava

https://bharathkibaath.com/news/2460

https://jagranhindi.in/dr-sunita-srivastava-and-narayani-manvendra-maya-badheka-honored-in-the-international-short-story-conference-of-pravah-sahitya-manch/